Sunday, February 20, 2011

चलो अब सोते हैं

वो क्या है की यूं तो हादसे होते ही रहते हैं
चलो अब सोते हैं

ये रात भी यूंही बेपरवाह निकल जायेगी
इस बात का क्या है
सुबह तक तो टल ही जायेगी

फिर चुस्की ले चाय की, अखबार में बाकी टटोल लेंगे
लाइनों के बीच भी मतलब कई होते हैं
चलो अब सोते हैं

ये बातें खाली तलवारों के मायन सी हैं
चुभती तो हैं बहुत लेकिन
बिन तीरों के नाकारा कमान सी हैं

इन पर भी कर लेंगे गौर कभी
फिलहाल के लम्हों को क्यों इन पर खोते हैं
चलो अब सोते हैं

जैसा हर बार करते हैं इस बार नहीं क्यों
टालना, बहलाना, गफलतों के चलते उलझना,
मुगालतों का हुनर भी अब गया हमको

जो पड गयीं सो पड गयीं
क्यों बनी हुई आदतें ख़राब करते हैं
चलो अब सोते हैं

यूं उठकर भी कब किसने क्या पाया है
आना जाना, खोना पाना
तो यूं भी मोह माया है

फिर दोस्तों की महफ़िल में बैठ फलसफे बयां करेंगे
ऐसे भी ये लम्हे अफ्सुर्दगी में गुज़रते हैं
चलो अब सोते हैं।