Tuesday, August 02, 2011

कभी कभी

कभी रात हमको सतायेगी, कभी हम उनको सताते हैं
वो अलसायी गरमी सा झुंझलाते हैं, हम आहें भर रह जाते हैं

कभी वो ख़ामोशी में आवाज़ हैं, खतो का इंतज़ार हैं
यूं तो उनके बहाने हज़ार हैं, कुछ डूब गए कुछ पार हैं

कभी कलियों की चटख रुखसार पर ले हँसी बहाते हैं 
लालिमा सूरज की लेकर गुस्से में सब पिघलाते हैं

कभी वो जुल्फों में उलझाते हैं, कभी यूंही बातें बनाते हैं 
कभी बिन सावन बरसात सा बस यूँही बरस जाते हैं

कभी धुप से नाराजगी, कभी भीड़ से घबराते हैं
कभी बेवजह के नखरों पर मेरी हामी चाहते हैं

कभी मैं भी उनसा बनता हूँ, हाँ में हाँ भर देता हूँ
वैसे तो करता नहीं पर उनकी खातिर कर लेता हूँ

आँखों में भरकर रातें, सपनो में दिन भर लेता हूँ
वो प्यार लड़कपन वाला अब भी, कभी कभी कर लेता हूँ

4 comments:

deep said...

:) lovely... naughty and cute !!!
enjoyed each bit..

BLUEGUITAR said...

Thanks Deep :)

ITSME said...

Kya baat hai hero...very nice..I really like your hindi poetry...still remember "haseena ki hasee ka yaaron karna naa aitbaar"

Pranjuli said...

Too good Bhai... abi ek book publish karne ka time aa gaya hai... :)

But this is damn good....

m lovng it ;)....