Tuesday, August 09, 2016

Raat aur Din

रात का इरादा है 
यूँही साथ बैठे बीत जाने का 
दिन के इरादे पता नही 
कल जाने ये दिन होगा भी या नही 

रात का इरादा है 
सहरा में बैठे चाँद निहारते रहने का 
दिन बेचैन है 
कल के ठिकाने के ख्याल से झूंझते 

रात का इरादा है 
हौले हौले चलते, परबत की दूसरी ज़ानिब जाने का 
दिन की आँखों में नींद है गहरी 
अब सोये तो न जाने फिर कब उठे 

रात का इरादा 
कभी नेक, कभी फरेब, कभी शोख़ी से इतराने का 
दिन साकित 
गुमसूम, किसी बंद कमरे का मेहमां 

रात इरादों की गिरफ़्त में 
आज़ादी से अफलाकों में टहलती है 
दिन अफ़सुर्दा 
फ़लक से मुख़्तसर सी मुलाक़ात को तरसता है

ये रात इरादों की रात है 
इस रात की अब कोई सुबह नहीं 
दिन राहगीर, मंज़िल है जिसको नसीब 
इस दिन का अब कोई सफर नही 


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