सोचता हूँ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ
यूं भी तो
शिखर की ऊँचाई हर किसी का ख्वाब नही होती
मेरी खुशी का सरोकार तो
दूर से ही शिखर को निहारने में है
कौन कह सकता है की
यही खुशी शिखर को छू लेने पर भी होती
माना की
दूसरी ज़ानीब भी जहान बहुत सारे हैं
पर फ़िर जहाँ मैं हूँ
किसी और जहान की जरूरत अब महसूस नही होती
सोचता हूँ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ
यूं भी तो
शिखर की ऊँचाई हर किसी का ख्वाब नही होती
मेरी खुशी का सरोकार तो
दूर से ही शिखर को निहारने में है
कौन कह सकता है की
यही खुशी शिखर को छू लेने पर भी होती
माना की
दूसरी ज़ानीब भी जहान बहुत सारे हैं
पर फ़िर जहाँ मैं हूँ
किसी और जहान की जरूरत अब महसूस नही होती
सोचता हूँ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ
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