Thursday, May 01, 2008

ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ

सोचता हूँ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ

यूं भी तो
शिखर की ऊँचाई हर किसी का ख्वाब नही होती

मेरी खुशी का सरोकार तो
दूर से ही शिखर को निहारने में है

कौन कह सकता है की
यही खुशी शिखर को छू लेने पर भी होती

माना की
दूसरी ज़ानीब भी जहान बहुत सारे हैं

पर फ़िर जहाँ मैं हूँ
किसी और जहान की जरूरत अब महसूस नही होती

सोचता हूँ
ज़िंदगी जो यूं ही गुजरी तो क्या गम हुआ

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